Sunday, September 28, 2008

रोमण हत्यारा - सुपर कमांडो ध्रुव


ये कहानी है कुछ ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों कि जो पद और पैसे के लालच में कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं और बन जाते हैं रोमण हत्यारा..

ये कामिक्स सुपर कमांडो ध्रुव के शुरूवाती दिनों के कामिक्स में से आती है.. शायद ध्रुव की दूसरी कामिक्स.. उन दिनों कामिक्स बाजार में इंद्रजाल कामिक्स, मनोज कामिक्स, डायमंड कामिक्स और तुलसी कामिक्स चला करते थे.. राज कामिक्स भी बाजार में अपनी पहचान नागराज के कामिक्स के द्वारा बना रहे थे.. ऐसे समय में राज कामिक्स ने ध्रुव नाम के एक नये कैरेक्टर को जन्म दिया और धीरे-धीरे पूरे बाजार पर छा गये.. अगर आज विशुद्ध भारतीय कामिक्स सुपर हीरोज की बात की जाये तो ध्रुव और नागराज ही सबसे पहले दिमाग में आते हैं.. मनीष गुप्ता जी और संजय गुप्ता जी को मैं तहेदिल से धन्यवाद देना चाहूंगा ऐसे चरित्रों का निर्माण करने के लिये.. आज भारतीय बाजार से मनोज कामिक्स, इंद्रजाल कामिक्स और तुलसी कामिक्स पूरी तरह से बंद हो चुके हैं(मेरी जानकारी मे, अगर मैं गलत हूं तो सही करें)..

मेरी नजर में शुरूवाती दिनों में आने वाली ध्रुव के कामिक्स कि बात ही कुछ और हुआ करती थी.. स्टोरी लाईन बिलकुल कसी हुई.. कहानी में तेजी और कुछ भी ऐसा नहीं जिसे आप यह कह सकें कि ये संभव नहीं है या फिर यह कि ये बस कहानियों या कामिक्स में ही हो सकते हैं.. आजकल उसके आने वाले कामिक्सो में वह बात नहीं रही.. मगर फिर भी मैं उम्मीद करता हूं कि वो स्वर्णिम दिन फिर से लौट कर आयेंगे..

आप फिलहाल यह कामिक्स पढें.. मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि ये आपको जबरदस्त लगेगी..

डाऊनलोड लिंक - XXXXXXXXXXXXX
इसे डाऊनलोड करने के लिये आप इस चित्र पर भी क्लिक कर सकते हैं..


संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..

Sunday, September 14, 2008

ग्रैंड मास्टर रोबो

हर सुपर हीरो का अपना एक सुनिश्चित सुपर विलेन भी होता है.. जैसे स्पाईडर मैन का ग्रीन गॉबलिन.. बैटमैन का जोकर.. कुछ ऐसा ही ध्रुव के भी कुछ सुपर विलेन सुनिश्चित हैं.. और इनमें प्रमुख हैं ग्रैंड मास्टर रोबो, चुम्बा, बौना वामन इत्यादी..

आज मैं आपके सामने लेकर आया हूं ग्रैंड मास्टर रोबो वाली ध्रुव की पहली कॉमिक.. ये एक फुल एक्सन पैड कामिक है.. बस लगातार पढते जाईये, ज्यादा सोचने का मौका नहीं मिलेगा.. एक के बाद एक लगातार नये एक्सन सीन बनते जायेंगे.. इस कॉमिक्स में ध्रुव के एक नये मित्र से भी परिचय कराया गया था, जो अभी तक उसकी कॉमिक्सों में आता है.. जब कभी भी ध्रुव मुसीबत में होता है तब उसका ये मित्र उसकी सहायता करने जरूर पहूंचता है.. इसका नाम धनंजय है.. अब यदी सारा कुछ मैं यहीं बता दूंगा तो आप क्या पढेंगे? सो बेहतर है की आप इस कॉमिक्स का मजा उठायें.. :)

इस कामिक्स का डाऊनलोड लिंक लिंक यहां है.. वैसे आप इसके चित्र पर भी क्लिक करके डाऊनलोड कर सकते हैं.. 

इसके लेखकों और चित्र बनाने वाले कलाकारों की जानकारी मुझे नहीं है.. अगर आपको हो तो मुझे जरूर बताईयेगा..

















संजय गुप्ता जी के अनुरोध पर डाउनलोड लिंक हटाया जा रहा है..

Friday, September 5, 2008

चरित्र जाने अनजाने भाग १ (इंद्रजाल कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित अनजान चरित्र)

डोगा वाली पोस्ट में मैंने कहा था कि कुछ अनजाने चरित्रों के बारे में बात करूँगा मगर समय के अभाव में लिखना संभव न हो पाया. बीच में एक बार लिखने का मूड भी बना तो एस्टरिक्स के विषय में पोस्ट दे मारी ऐसे में हमारे अनजाने चरित्र बेचारे फिर से उपेक्षित रह गए. चलिए देर आयद दुरुस्त आयद आज उनकी बातें करें जो बेचारे कॉमिक्स की दुनिया में चुप चाप आए और खामोशी की चादर ओढे गुमनामी की गर्त में खो गए, कभी इस असफलता के पीछे कहानियों का अभाव रहा कभी mainstream सुपरहीरोज़ के दीवाने पाठकों की बेरुखी. कारण जो भी हो मगर बड़ा बुरा लगता है कि ब्लॉग की दुनिया में भी इन बेचारों का ज़िक्र कभी कभार भूले भटके ही देखने को मिलता है.
इससे पहले कि इन किरदारों की बातें शुरू करुँ सोचता हूँ ज़रा सा परिचय भारतीय कॉमिक बुक इतिहास से भी कराता चलूँ.
भारत में कॉमिक्स का आगमन वैसे Illustrated Weekly Of India के साथ हुआ (यदि यह information ग़लत है तो सुधि पाठक कृपया मुझे सुधारेंगे) जिसमें साप्ताहिक कॉमिक स्ट्रिप्स छपा करती थी. मगर सही मानो में कॉमिक्स की शुरुआत हुयी टाईम्स ऑफ़ इंडिया ग्रुप की इंद्रजाल कॉमिक्स के साथ, जिसमें एक लंबे समय तक फैंटम, मेंड्रेक और फ्लैश जैसे विदेशी सुपर हीरोज़ छाये रहे. मगर वक्त के साथ भारतीय नायकों की कमी महसूस की जाने लगी ऐसे में १९७६ में आबिद सुरती (जिन्होंने भारत की प्रथम कॉमिक स्ट्रिप बटुक जी की रचना की थी) ने रचना की बहादुर की और गोविन्द ब्राह्मणिया (जो कि उन दिनों इंद्रजाल कॉमिक्स के कवर बनाया करते थे) के चित्रों से सजे बहादुर बेला के कारनामे लोगो के दिल को बहलाने लगे.
बहादुर की सफलता से प्रभावित हो कर प्रकाशकों ने कुछ और भारतीय चरित्रों की कॉमिक्स निकलने का प्लान बनाया और प्रदीप साठे द्वारा रचित 'आदित्य - अनजान लोक का मसीहा' की कहानियाँ १९८७ से इंद्रजाल में प्रकाशित होने लगी (आदित्य की कहानियाँ किसने लिखी हैं यह अज्ञात है).
आदित्य की कहानी शुरू होती है जब एक दिव्य शक्तियों वाला भिक्षुक सन्यासी आदित्य हिमालय की तराई में बसे किसी गाँव आ पहुँचता है. अपने origin के विषय में आदित्य ख़ुद भी कुछ नहीं जानता. बहरहाल आदित्य की कहानियाँ बड़ी जल्दी बंद हो गई और साथ ही उसका रहस्य भी रहस्य ही रह गया. १९८८ में इंद्रजाल ने प्रकाशित करनी शुरू की दारा सीरीज़. दारा की कहानियाँ कामिनी उप्पल की थी और चित्र प्रदीप साठे के.
(लेखिका कामिनी उप्पल की जानकारी और उपरोक्त चित्र साभार इस ब्लॉग से) दारा का किरदार काफ़ी कुछ ऐसा था कि अब सोच कर लगता है कि वह ब्रूस वेन और James Bond का मिला जुला रूप था. दारा ब्रूस की तरह काफ़ी मालदार हीरो था, जहाँ ब्रूस की संपत्ति खानदानी है वहीँ दारा दरअसल काश्मीर के एक राजघराने का इकलौता वारिस है और उसका असली नाम है राणा विक्रम वीर सिंह, रियासत के लोग उसे राजा साहब कह कर बुलाते हैं. इंटेलिजेंस विंग के मुखिया मि. राव और कुछ ख़ास लोगो के अलावा कोई भी दारा की असली पहचान नहीं जानता. इंटेलिजेंस विंग के Spy के रूप में दारा अपना मिशन पूरा करके अपनी रियासत कब पहुँच जाता है ये कामिनी उप्पल और प्रदीप साठे के अलावा कोई नहीं जानता. मैंने दारा की कुछ कॉमिक्स बचपन में पढ़ी हैं पर दारा का प्रकाशन कब बंद हुआ इस विषय में मैं अनभिज्ञ हूँ. इन्टरनेट पर काफ़ी खोजने पर सिर्फ़ यह ब्लॉग हाथ लगा जिसके मुताबिक दारा की कुल आठ कहानियाँ प्रकाशित हुयी हैं और अप्रैल १९९० में इंद्रजाल का प्रकाशन बंद होते ही दारा की कॉमिक्स बंद हो गई.

(अनजाने चरित्रों की फेहरिस्त काफ़ी लम्बी है और उनकी कहानियाँ भी यदि यह पोस्ट आपको पसंद आयीं हो तो अपनी कमेंट्स देंगे और मैं भाग २ लिख कर पोस्ट कर दूँगा, इच्छा है कि कुछ शेरबाज़, अनोखा चोर रुस्तम, अंगूठे लाल, सागर सलीम, जौहर, राजा और पिद्दी पहलवान पर भी लिखूं ये सारे चरित्र मनोज कॉमिक्स और राज कॉमिक्स पर समय समय पर प्रकाशित हुए और वक्त के साथ गुमनामी के अंधेरों में खो गए, इनके अलावा मानसपुत्र और डिटेक्टिव कपिल पर भी लिखने की इच्छा है जो कि अनुपम सिन्हा कि कलम से तब निकले थे जब सुपर कमांडो ध्रुव का जन्म भी नहीं हुआ था.)

- आलोक

पुनःश्च : काफ़ी माथापच्ची के बाद भी आदित्य की कोई इमेज इन्टरनेट पर नहीं मिल पायी।